जो देखा, वो लिखा...... यूँ ही अपना सफ़र चलता रहा!
सीखा जो सिखाया... मैं यूँ ही बस चलता रहा!
करने को तो, मैं भी रहगुज़र कर सकता था किसी एक कोने में,
पर मेरा सफ़र........
हर मोड़ पर, मुझे हर बार एक नया एहसास सिखाता रहा!
Monday, August 31, 2015
मुझ सा कोई....
आँखों में कई ख्वाब हैं,
ख्वाबो में है एक चेहरा,
कहकर भी देखा, छूकर भी देखा,
वो है मुझ सा, पर वो मैं नहीं!!
वो कभी हँसता है खुद पर,
कभी बे-बात ही रो जाता हैं,
वो दिल की करता है, खुद की मर्ज़ी से,
वो है मुझ सा, पर वो मैं नहीं!!
वो लड़ता.. झगड़ता है, दुनिया से,
वो मिन्नतें करवाकर, लौट आता हैं,
इस आँख-मिचोली के खेल में भी,
वो है मुझ सा, पर वो मैं नहीं!!
वो अंधी रातो की आवाज़ सा,
वो उजली सुबहो के किरणों सा,
खुद को पल पल बदलता है,
वो है मुझ सा, पर वो मैं नहीं!!
वो देख के मुझको सोचता है,
आँखें मूंदकर कुछ-कुछ कहता है,
ना जाने किन बातो में उलझा है..
वो ... जो है मुझ सा,
वो... जो मैं नहीं!!
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ख्वाब - Dream
ReplyDeleteमर्ज़ी - Wish
मिन्नतें - Requests
आँख-मिचोली - game of Hide and Seek
उजली - Bright
आँखें मूंदकर - With Closed Eyes
Very nice post ...
ReplyDeleteWelcome to my blog.
Very nice
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