जो देखा, वो लिखा...... यूँ ही अपना सफ़र चलता रहा!
सीखा जो सिखाया... मैं यूँ ही बस चलता रहा!
करने को तो, मैं भी रहगुज़र कर सकता था किसी एक कोने में,
पर मेरा सफ़र........
हर मोड़ पर, मुझे हर बार एक नया एहसास सिखाता रहा!
Saturday, November 2, 2013
कविता
सोचता हूँ कैसे शुरुवात करू, इस अफ़साने का,
शुरुआत एक कविता की... कविता के इस अफ़साने का!
रहता है इंतज़ार.. बस उनकी आती missed calls का,
फिर बेताब हो जाता है मन, उसके पीछे के कारणों को जानने का!
अक्सर तो हम उन्हें सुना ही करते है,
उनकी बातो और हंसी में हम खो जाते है हाल इस ज़माने का!
कहना तो हम चाहते है बहुत कुछ उनसे...
पर उनकी आँखें देखकर भूल जाते है मकसद अपनी बातों का!
मुश्किल लग रहा है ये कुछ दिन काटना..
इंतज़ार के इन पलो को यूँ हथेलियों पे गिनना!
सोचता हूँ ज़रूर मेरे पिछले जनम के सबाब का आप फल होंगी,
इस जनम में तो मुझे याद नहीं आता कोई कारण, उस के इस प्रसाद का!
पहले हम तन्हाई में खुद को सोचा करते थे,
अब तो वक़्त ही नहीं मिलता, खुद को तुझसे बचाने का!
कभी कभी जो हम सोचते ही शायद आज खुश रहेंगे!
पर पूरा दिन निकल जाता है एक नयी धुन तुझ पर बनाने में!
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
शुरुवात - Start
ReplyDeleteअफ़साने - Story
कविता - Poem
मकसद - Reason
हथेलियों - Palm
धुन - Tune